वांछित मन्त्र चुनें

य॒ते स्वाहा॒ धाव॑ते॒ स्वाहो॑द्द्रा॒वाय॒ स्वाहोद्द्रु॑ताय॒ स्वाहा॑ शूका॒राय॒ स्वाहा॒ शूकृ॑ताय॒ स्वाहा॒ निष॑ण्णाय॒ स्वाहोत्थि॑ताय॒ स्वाहा॑ ज॒वाय॒ स्वाहा॒ बला॑य॒ स्वाहा॑ वि॒वर्त्त॑मानाय॒ स्वाहा॒ विवृ॑त्ताय॒ स्वाहा॑ विधून्वा॒नाय॒ स्वाहा॒ विधू॑ताय॒ स्वाहा॒ शुश्रू॑षमाणाय॒ स्वाहा॑ शृण्व॒ते स्वाहेक्ष॑माणाय॒ स्वाहे॑क्षि॒ताय॒ स्वाहा॒ वीक्षिताय॒ स्वाहा॑ निमे॒षाय॒ स्वाहा॒ यदत्ति॒ तस्मै॒ स्वाहा॒ यत्पिब॑ति॒ तस्मै॒ स्वाहा॒ यन्मूत्रं॑ क॒रोति॒ तस्मै॒ स्वाहा॑ कुर्व॒ते स्वाहा॑ कृ॒ताय॒ स्वाहा॑ ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य॒ते। स्वाहा॑। धाव॑ते। स्वाहा॑। उ॒द्द्रा॒वायेत्यु॑त्ऽद्रा॒वाय॑। स्वाहा॑। उद्द्रु॑ता॒येत्युत्ऽद्रु॑ताय। स्वाहा॑। शू॒का॒राय॑। स्वाहा॑। शूकृ॑ताय। स्वाहा॑। निष॑ण्णाय। निस॑न्ना॒येति॒ निऽस॑न्नाय। स्वाहा॑। उत्थि॑ताय। स्वाहा॑। ज॒वाय॑। स्वाहा॑। बला॑य। स्वाहा॑। वि॒वर्त्त॑माना॒येति॑ वि॒ऽवर्त्त॑मानाय। स्वाहा॑। विवृ॑त्तायेति॒ विऽवृ॑त्ताय। स्वाहा॑। वि॒धू॒न्वा॒नायेति॑ विधून्वा॒नाय॑। स्वाहा॑। विधू॑ता॒येति॒ विऽधूता॒य। स्वाहा॑। शुश्रू॑षमाणाय। स्वाहा॑। शृ॒ण्व॒ते। स्वाहा॑। ईक्ष॑माणाय। स्वाहा॑। ई॒क्षि॒ताय॑। स्वाहा॑। वीक्षि॑ता॒येति॒ विऽईक्षि॑ताय। स्वाहा॑। नि॒मे॒षायेति॑ निऽमे॒षाय॑। स्वाहा॑। यत्। अत्ति॑। तस्मै॑। स्वाहा॑। यत्। पिब॑ति। तस्मै॑। स्वाहा॑। यत्। मूत्र॑म्। क॒रोति॑। तस्मै॑। स्वाहा॑। कु॒र्वते॑। स्वाहा॑। कृ॒ताय॑। स्वाहा॑ ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (यते) अच्छा यत्न करते हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (धावते) दौड़ते हुए के लिये (स्वाहा) श्रेष्ठ क्रिया (उद्द्रावाय) ऊपर को गये हुए गीले पदार्थ के लिये (स्वाहा) सुन्दर क्रिया (उद्द्रुताय) उत्कर्ष को प्राप्त हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (शूकाराय) शीघ्रता करनेवाले के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (शूकृताय) शीघ्र किये हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (निषण्णाय) निश्चय से बैठे हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (उत्थिताय) उठे हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (जवाय) वेग के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (बलाय) बल के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (विवर्त्तमानाय) विशेष रीति से वर्त्तमान होते हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (विवृत्ताय) विशेष रीति से वर्त्ताव किये हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (विधून्वानाय) जो पदार्थ विधूनता है, उसके लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (विधूताय) जिसने नाना प्रकार से विधूना उस के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (शुश्रूषमाणाय) सुना चाहते हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (शृण्वते) सुनते के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (ईक्षमाणाय) देखते हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (ईक्षिताय) और से देखे हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (वीक्षिताय) भलीभाँति देखे हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (निमेषाय) आँखों के पलक उठने-बैठने के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (यत्) जो (अत्ति) खाता है (तस्मै) उस के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (यत्) जो (पिबति) पीता है (तस्मै) उसके लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (यत्) जो (मूत्रम्) मूत्र (करोति) करता है (तस्मै) उस के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (कुर्वते) करनेवाले के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया तथा (कृताय) किये हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया करते हैं, वे सब सुखों को प्राप्त होते हैं ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - जो अच्छे यत्न और दौड़ने आदि क्रियाओं को सिद्ध करनेवाले काम तथा सुगन्धि आदि वस्तुओं के होम आदि कामों को करते हैं, वे समस्त सुख और चाहे हुए पदार्थों को प्राप्त होते हैं ॥८ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यते) प्रयतमानाय (स्वाहा) सत्क्रिया (धावते) (स्वाहा) (उद्द्रावाय) ऊर्ध्वं गताय द्रवीभूताय (स्वाहा) (उद्द्रुताय) उत्कर्षं गताय (स्वाहा) (शूकाराय) क्षिप्रकारिणे (स्वाहा) (शूकृताय) क्षिप्रकृताय (स्वाहा) (निषण्णाय) निश्चयेन स्थिताय (स्वाहा) (उत्थिताय) कृतोत्थानाय (स्वाहा) (जवाय) वेगाय (स्वाहा) (बलाय) (स्वाहा) (विवर्त्तमानाय) विशेषेण वर्त्तमानाय (स्वाहा) (विवृत्ताय) विविधतया कृतवर्त्तमानाय (स्वाहा) (विधून्वानाय) यो विविधं धुनोति तस्मै (स्वाहा) (विधूताय) येन विविधं धूतं कम्पितं तस्मै (स्वाहा) (शुश्रूषमाणाय) श्रोतुमिच्छते (स्वाहा) (शृण्वते) यः शृणोति तस्मै (स्वाहा) (ईक्षमाणाय) दर्शकाय (स्वाहा) (ईक्षिताय) अन्येन दृष्टाय (स्वाहा) (वीक्षिताय) विशेषेण कृतदर्शनाय (स्वाहा) (निमेषाय) (स्वाहा) (यत्) (अत्ति) भक्षयति (तस्मै) (स्वाहा) (यत्) (पिबति) (तस्मै) (स्वाहा) (यत्) (मूत्रम्) (करोति) (तस्मै) (स्वाहा) (कुर्वते) (स्वाहा) (कृताय) (स्वाहा) ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये मनुष्या यते स्वाहा धावते स्वाहोद्द्रावाय स्वाहोद्द्रुताय स्वाहा शूकाराय स्वाहा शूकृताय स्वाहा निषण्णाय स्वाहोत्थिताय स्वाहा जवाय स्वाहा बलाय स्वाहा विवर्त्तमानाय स्वाहा विवृत्ताय स्वाहा विधून्वानाय स्वाहा विधूताय स्वाहा शुश्रूषमाणाय स्वाहा शृण्वते स्वाहेक्षमाणाय स्वाहेक्षिताय स्वाहा वीक्षिताय स्वाहा निमेषाय स्वाहा यदत्ति तस्मै स्वाहा यत्पिबति तस्मै स्वाहा यन्मूत्रं करोति तस्मै स्वाहा कुर्वते स्वाहा कृताय स्वाहा कुर्वन्ति ते सर्वाणि सुखानि लभन्ते ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - ये प्रयत्नधावनादीनां साधकानि सुगन्ध्यादिहोमप्रभृतीनि च कर्माणि कुर्वन्ति, ते सर्वाणीष्टानि वस्तूनि प्राप्नुवन्ति ॥८ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक कोणतीही क्रिया करताना चांगल्याप्रकारे प्रयत्न करतात व गतिमान बनतात व सुगंधित पदार्थांचा होम इत्यादी उत्तम कार्य करतात त्यांना संपूर्ण सुख व इच्छित पदार्थ प्राप्त होतात.